मेरा प्रिय मित्र पर निबंध



जब मैंने कक्षा चार में नए स्कूल में एडमिशन लिया तो उस समय नए जगह होने की वजह से मेरे कोई मित्र नहीं थे। क्लास में पहले तो तीन-चार दिन दूसरे लड़कों से ज्यादा बातचीत के बिना ही रहा। फिर धीरे-धीरे धीरज नाम का एक लड़का मेरे साथ बैठने लगा और फिर धीरे-धीरे उससे बातचीत बढ़ने लगी और हमारे बीच दोस्ती बढ़ गई। धीरज मेरी काफी पढ़ाई में मदद कर दिया करता था। जब भी मेरे क्लास में अगर कुछ लिखना छूट जाता था तो मैं धीरज से उसके नोटबुक लेकर वह चीज लिख लिया करता था और लंच के समय मैं धीरज के साथ खाना खाया करता था।

कुछ दिनों बाद धीरज मुझे अपने घर ले गया। धीरज का घर काफी बड़ा था। धीरज के पिताजी कोर्ट के जज थे और धीरज की माता गृहणी थी। धीरज के घर में दो नौकर भी रहते थे। उसके घर में एक कुत्ता भी था। धीरज के घर में कई सारे पेंटिंग थे, जो देखने में बहुत अच्छा लगता था।

धीरज को पढ़ाई करना काफी ज्यादा पसंद था। घर में वह ज्यादातर समय पढ़ता रहता था। वह कभी-कभार ही बाहर खेलता था। धीरज को टीवी देखना भी पसंद नहीं था और वह ज्यादा लोगों से बातचीत भी नहीं करता था।

धीरज एक बहुत ही मददगार लड़का था। वह अपने आसपास के छोटे-छोटे गरीब बच्चों को खाली समय में पढ़ाया करता था। धीरज कभी भी स्कूल में छुट्टी नहीं लेता था। वह हमेशा समय से पहले स्कूल पहुंचता था और हमेशा अगली सीट पर बैठता था। धीरज कक्षा में भी बहुत ज्यादा शांत रहता था। सारे शिक्षक धीरज से काफी खुश रहा करते थे क्योंकि धीरज सारे शिक्षक की बातों को काफी ध्यान से सुनता था और सारे नोट लिखता था। जब तक मैं उस स्कूल में रहा, धीरज मेरा सबसे प्रिय मित्र था। धीरज हर वक्त इस बात का ध्यान रखता था कि सामने वाले को कभी भी उसकी बातों से दुख ना पहुंचे, यही बात मुझे धीरज की काफी अच्छी लगती थी।

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